चाँद दिखा और ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी, मुक़द्दस रमजान का एलान हो गया.इससे मुझे क्या ,मैं न तो नमाज़ी हूँ न रोजेदार.पर भाई हम लोगों को इंतज़ार रहता है इफ्तार की दावतों का, खालिस मुगलाई अंदाज में बने पकवानों का.और रमजान के बाद दोस्तों मित्रों के यहाँ ईद मिलने जाना, बस उन्हीं लोगों के यहाँ मिलने वाली खास सेवइयां एक बार आप खा लें तो ताउम्र याद रखेंगे.मुझे याद है की पिछले साल की ईद और अयोध्या पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसल लगभग साथ ही आये थे.मार -काट की तमाम संभावनाएं टीवी चैनलों ने तैयार की थीं पर कुछ फैसले की समझदारी और कुछ वक्त की मार से घायल जनता की लाचारी से माहौल खराब नहीं हुआ था और ईद बढ़िया बीत गयी. मैं भी अपने गंगा-जमुनी तहजीब वाले शहर गाजीपुर में परवेज़ भाई के घर दावत उड़ाने गया था और बच्चे को ईदी दे कर निकलते समय सोच रहा था की इन बच्चों को राम और अल्लाह से क्या लेना,होसके तो हम इन्हें इंसान बनाने की कोशिश करें;खुद तो हम क्या हैं ये कहा नहीं जासकता.
पर इस साल का चाँद एक फ़तवा लेकर भी आया है.दारुल उलूम नदवातुल उलेमा (नदवा कालेज,लखनऊ ) ने एक फतवे में कहा है की सियासी इफ्तारों में शामिल होने से एहतियात किया जाना चाहिए. सही बात भी है,रमजान आते ही चौराहों पर होर्डिंग लगा के सफ़ेद बगुले बैठ जाते हैं. अनेक सफ़ेदपोश इफ्तार पार्टियों का आयोजन करने लगते हैं और खुदा था अकलियत के खिदमतगार के रूप में नज़र आने लगते हैं.टोपियों का धंधा बढ़ जाता है और शुरू हो जाती है नौटंकी जिसका खुदा से कोई वास्ता ही नहीं.लगभग सभी राजनैतिक पार्टियों के लोग इफ्तार का आयोजन ऐसे करते हैं गोया आलाकमान ने व्हिप जारी कर दिया हो.इन दावतों में खुदा का तो नहीं पर खुदाई का जिक्र होता है, कौन कहाँ कितना खोदने में सफल होता है, बस इसी जुगाड्बाजी में रोजे खुलवाने की दावतें होती हैं.जाहिर है जब रब से वास्ता ही नहीं तो बात रब्बानी हिना खार की ही होती होंगी.
एक सवाल के जवाब में नदवा से कहा गया है की इफ्तार उसी के यहाँ जायज है जिसकी आमदनी भी जायज हो.ये तो और भी गंभीर मसला है,जायज आमदनी वाला बंदा खुदा को याद करके किसी तरह अपनी दाल रोटी चला ले वही बहुत है. इस महंगाई में बोटी का जुगाड़ करना तो एवरेस्ट चढ़ने के बराबर हो गया है.उस पर तुर्रा ये की बड़े का जो गोष्ट है उस धंधे में भी इतनी माफियागिरी घुस गयी की आम आदमी के लिए वो भी खरीदना मुश्किल हो गया है.ऐसे में जायज कमाई वाले कहाँ से इफ्तार दे पायेंगे.राजभवन और मुख्यमंत्री आवास में भी इफ्तार पार्टियां होती हैं ,पता नहीं उनकी कमाई कितनी जायज,खुदा जानें.
अब एक संस्था ने कहा है की वो इस फतवे की प्रति हर मस्जिद में बंटवायेगी ताकि रोजेदारों की पाकीज़गी मुकम्मल रहे.
अब पता नहीं सियासी पार्टियां और मौसमी कुकुर्मोत्तों पर कोई फर्क पड़ेगा की नहीं पर जिनको अपना मुसल्लम ईमान बचाना है उन्हें तो सावधान रहना ही होगा.आज ही अखबार में टोपी पहने मुलायम सिंह की आधी पेज की फोटो है जिसके साथ रमजान के महीने का पूरा कैलेण्डर है,सहरी और इफ्तारी के साथ.शायद उनको लगता होगा की रोजेदारों के यहाँ अब हिज़री का कैलेण्डर नहीं होता और ईसाई कैलेण्डर से कहीं रोजे पर असर न पड़े.अगले चुनावों को देखते हुए सपा ने ये एक क्रांतिकारी कदम उठाया है. खैर इन सबसे मुझे क्या लेना देना, अपन तो इंतजार करेंगे की ईद आये और हम उनके घर जाएँ.
का धनंजय बाबू ब्लाग का खबरे नही दिये कभी । चलिये अब हमने फ़ालो कर लिया है ।
जवाब देंहटाएंbahut achcha laga.....
जवाब देंहटाएंदवे जी और मृदुला जी धन्यवाद . अरुणेश भाई स्वान्तः सुखाय लिखता हूँ और अभी इसको हलके में ही ले रहा हूँ,पता नहीं कब तक चलेगा.फालो करने के लिए आभार,अभी तकनिकी ज्ञान ज्यादा नहीं है और नेट की उपलब्धता भी रुलाने वाली है इसलिए इस मोर्चे पर सन्नाटा है.
जवाब देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी है! सूचनार्थ निवेदन है!
जवाब देंहटाएंvery good voice you have raised ..... how we have
जवाब देंहटाएंlost ,and will loss it might be calculated ... thanks .
सही कहा ,हमसभी को पहले इन्सान बनने की आवश्यकता है .....आगे भी लिखते रहिए
जवाब देंहटाएंरेखा जी धन्यवाद. आपके ये चुनिन्दा शब्द प्रेरित करते रहेंगे.उदयवीर जी आप मेरी गली आये,तहे दिल से शुक्रिया.
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