हे मनमोहन , ये कौन सी लीला
हे मनमोहन तुम्हरी माया अपरम्पार.महागुरु नरशिम्हा राव ने तुम्हारी प्रतिभा को पहचाना. उसके पहले तुम रहे होगे एक विद्वान अर्थशास्त्री.बड़ी मोटी डिग्री और अनुभव लेकर आप आये.विश्व बैंक के नारे पर चल कर देश को एक विश्व ग्राम से कनेक्ट करने की तैयारी शुरू हो गयी थी.और हो गया यहाँ भी ग्लास्नोस्त और पेरोस्त्रोइका.तुम्हारे आते ही देश में बहार आगई, बड़ी ईमानदारी से देश को अमेरिका बनाने में जुट गए.और अमेरिका बनते देश ने सुनना शुरू किया ऐसी बड़ी बड़ी रकम के बारे में जो सपने भी नहीं सुना था.तुमने खोल दिए थे फाटक जिससे हवा में उड़ने लगीं थीं नोटों की गड्डियाँ.इण्डिया का शाईनिंग बड़ी तेज़ी से होने लगा था.तभी हर्षद मेहता का नाम उछला और पहली बार चर्चा में आई तुम्हारी और चिंदम्बरम की जोड़ी, फिर यूरिया का जहाज जो चला ही नहीं कभी उसको भी पूरा पेमेंट कागज पर ही करवा दिया.सौ करोड़ से ज्यादा का पेमेंट राव साहब के सुपुत्र खा गए और आपकी आर्थिक कलाबाज़ी ने सबको बचा लिया.
कतरब्योंत की साईलेंट क़ाबलियत बहुत काम आई और आपने प्रधानमंत्री का पद पाया. फिर तो ऐसी आज़ादी आई की दुनिया आपकी कायल हो गयी और अमेरिका से आपको दुनिया के बेहतरीन लीडरान में शामिल किया गया.और कहा जाता है की दुनिया में कोई भी चीफ ऑफ़ स्टेट आप जैसी अकेडमिक योग्यता वाला नहीं हुआ है पर आपकी योग्यता ने तो ऐसे गुल खिलाये की दुनिया की आँखें फट गयीं.आपके पहले के मिस्टर क्लीन कितनी छोटी रकम के चलते सत्ता से बेदखल हो गए अब पता चलता है.आप के तमाम सहयोगी तिहाड़ी हो गए, संचार क्रांति की तरंगों को पकड़ कर जो रास्ता सुखराम ने अपनाया था वो बड़ा ऊपर तक चला गया.और देश ने घोटाले के राजा को देखा,दुनिया भी जान गयी आपकी क़ाबलियत.जितना कुछ देशों का बज़ट होता है उतने का यहाँ घोटाला होगया.आपके सामने संविधान की शपथ लेने वाले राजा ने कहा की आप के मार्गदर्शन में ही सब खेल हुआ,कोई चिंदी चोर हवालात में कुछ कहता है,किसी का नाम लेता है तो उसे भी तुरंत अन्दर पहुंचा दिया जाता है पर आप बच गए क्योंकि आप ईमानदार हैं.ऐसे ही ही दिल्ली में खेल हुए पूरी दुनिया ने देखा, पर आप इस खेल में नहीं थे ये हम कैसे मान लें.
आपने आठवीं बार लालकिला पर तिरंगा फहरा दिया,पर उसके पहले अन्ना को आप बताने से नहीं चूके की अनशन करना है तो सही जगह अपना आवेदन करें.अरे भाई आज़ादी के चौंसठ साल बाद भी आम आदमी को नहीं पता की वो कौन सी सही जगह है जहाँ अपना आवेदन दें.आप को तो पता होगा ही, काहें नहीं अन्ना की चिट्ठी सही जगह भेज दिए.आप के हवाले से जाती तो काम भी हो जाता. लालकिला से आप भ्रष्टाचार- भ्रष्टाचार बोलते रहे पर फिर दिल्ली में ये क्या कर दिया.
अरे अब भी समय है ,कुछ अपना भी दिमाग लगाईये और अब अनर्थ ज्यादा मत हो कुछ ऐसा ही कदम उठायिए.कुछ और नहीं तो कुर्सी से उतर जाईये और छोड़ दीजिये उन्ही पर जिनसे आप सलाह लेते हैं हैं और जिनके कहने पर चलते हैं.तिरंगे की इज्ज़त नीलाम मत करिए, संसद तो बिकाऊ हो ही गयी है.आपका आर्थिक उदारीकरण बड़ा भरी पड़ा है.अब भी समय है संभल जाईये.
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आपकी अपील बहुत ही सार्थक है धनंजयजी.....बधाई
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