एक मुलाकात नत्था से

कल दिन भर बिजली गोल रही और इनवर्टर बोल गया ,शाम को सोचा की अन्धकार को क्यों कोसें चलो मोमबत्ती जलाएं.बाज़ार गया तो किसी दुकान में नहीं मिली.बताया गया की जिन शहरों में दिन भर बिजली रहती है वहीं आज कल सारी मोमबत्तियां ख़तम हो जारही हैं.मैं खुश हो कर घर रहा था की चलो देश में जनजागरण चल रहा है और अब बदलाव आने वाला है तभी किसी ने आवाज लगायी.मैं और भी खुश की इतने प्यार से बुलाने वाले लोग अभी बचे हैं.पीछे मुड कर देखा तो खादी का हाफ कुरता,जींस चढ़ाये,सलीके से दाढ़ी रखे एक मझोले कद का आदमी दिखा.कंधे पर झोला लटक रहा था,मैंने अंदाजा लगाया की कोई संस्थाजीवी आदमी होगा.किसी ने बता दिया होगा की मैं प्रेस रिलीज़ बढ़िया लिख लेता हूँ और जुगाड़ लगा के इधर उधर छपवा भी सकता हूँ और ये काम खाली खुराकी पर ही कर देता हूँ इसलिए पकड़ो
पास आकर उसने कहा ,नहीं पहचाना ,मैं आपका नत्था.अब तो चौंकना लाज़मी था.मैंने कहा की यार सिनेमा में तो दिखाया था की तुम शहर में मजदूरी करने चले गए फिर ये बदलाव कैसे.वो बोला की ये शहर का ही तो कमाल है.मैंने कहा की चल किसी चाय की दुकान में बैठते हैं फिर मुझे तुम्हारी लम्बी कहानी सुननी है.मेरे मन में उसके
बदलाव से ख़ुशी मिश्रित इर्ष्या हो रही थी.वो बोला कि देखिये देश में विकास की स्थिति ,मैं तीन साल बाद अपने इलाके में आया पर यहाँ शहर में कोई ढंग का रेस्तरां नहीं जहाँ दस मिनट शांति से बैठा जासके फिर सोचिये मेरे गाँव का क्या हाल होगा.अब मेरी उत्सुकता बढ़ गयी कि ये जो बीडी मांग कर पीता था इतनी बड़ी बड़ी बातें कैसे कर रहा है.खैर वहीं चाय की दुकान पर बैठा gaya ,साफ लग लग रहा था कि नत्था को वहां बैठना अच्छा नहीं लग रहा था पर वो बैठा और जो सुनाया उसे मैं उसी कि जुबानी लिख रहा हूँ ताकि आप के भी काम आये.
" आप ने तो देखा ही होगा की मैं टीवी वालों से बच के भाग निकला और शहर आगया.मजदूरी करने लगा और दाल रोटी बीडी का जुगाड़ चल निकला.दिन भर खटता और शाम को पौव्वा मार के सो जाता था.देश भर के अपने टाईप के लोग थे ,समय अच्छा कट रहा था.तभी एक दिन एक बहन जी आयीं और बोलीं की कितने दिन से तुमको खोज हूँ और तुम यहाँ हो,मैं घबडाया की अब कौन सिनेमा बनाएगी.पर उन्होंने मुझे अपनी गाड़ी में बैठाया और घर ले गयीं जहाँ दस बीस आदमी औरत सब बैठे हुए थे.सब देश, विकास ,गरीब, शोषण और अमेरिका और जाने क्या क्या बोल रहे थे.तब मुझे ये सब समझ में नहीं आता था.फिर एक आदमी मुझे चाय पकड़ाते हुए बोला की नत्थाजी आप जैसे लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए आप को खुद आगे आना होगा,हम लोग इसमें आप की मदद करेंगे.व्यवस्था बदलनी ही होगी,कब तक खाली सिनेमा ही बनता रहेगा.भईया मुझे तो समझ में नहीं आरहा था.पर मेरे रहने खाने का जुगाड़ उन्ही लोगों ने कर दिया और कहा की अब आप अपने जैसे लोगों को जगाने का काम करिए,हमारे साथ रहिये
भईया मैं फिर उनलोगों के साथ साथ बड़े-बड़े हाल में जाता और वहां खूब खाए पिए लोगों के बीच में अपनी कहानी सुनाता,काहें से की सब बात पर तो सिनेमा बना नहीं था.फिर बहन जी ने बहुत कागज पत्तर पर मेरा अंगूठा लिया ,डर की बात थी नहीं ,क्या था मेरे पास जो वो लेती.एक दिन सब हमको बताये की तुमको अमेरिका चलना है और वहां दुनिया भर के लोगों के अपनी बात बतानी है.मैंने कहा की सब को सिनेमा दिखादो तो सब हमको डपट दिए और बोले की जैसा कहा जाय वैसा ही करो.तो भईया मैं अमेरिका गया,फिर वहां से और जगह भी गया,एक लायीं मैं बोलता फिर वही बात बहन जी अंग्रेजी में सबको बतातीं.बड़ा मजा आने लगा.लौट के देश आया तो बहन जी के एक साथी ने बताया की तुमको घुमा के ये कितना पैसा बना रही है तुम नहीं जानते,अब तुम हमारे साथ रहो.हमको भी साल भर में सब समझ में आने लगा था.पांच तक मैं भी कभी कभी स्कूल जाता था,भईया अखबार पढ़ना सिखाये ही थे ,इतना बेवकूफ मैं नहीं था.समझ में आगया की जो ज्यादा पैसा दे उसीके साथ रहूँगा.कुछ दिन फिर मैं दूसरे लोगों के साथ काम करने लगा,गरीबी पर भाषण देने के काम में बड़ा फायदा है.खूब ढेर सारी जान पहचान हो गयी,बहुत लोग अब नत्था जी कहते हैं.पिछले साल मैंने अपनी संस्था बनाली,दिल्ली में ही आफिस है.अब समय एकदम नहीं मिलता,अभी देश में बहुत काम करना है,असली आज़ादी अभी आई नहीं है.गरीब की दशा और ख़राब होगई है.उनका कोई सुनने वाला नहीं है."
मुझे अब देश की चिंता नहीं अपने घर की चिंता होने लगी थी की वहां अँधेरा है और बाज़ार में मोमबत्ती नहीं मिली.तभी फिर नत्था बोल पड़ा भईया आप तो घर जारहे हैं नहीं तो विलायती शीशी है झोले में,क्या करें इतना वर्कलोड है की अब तो ये जरूरत हो गयी है.मुझे अब कोफ़्त होने लगी थी की अब तो ये अंग्रेजी भी बोलने लगा है.
फिर उसने कहा की अब तो कोई साधन मिलेगा नहीं कहीं से भाड़े की गाड़ी का जुगाड़ कर दीजिये,मुझे गाँव जाना है .वहां प्रधान जी के घर आज मेरा खाना है,फिर वहीं आराम करेंगे और सुबह मंगरू को लेकर दिल्ली निकल जायेंगे.उसकी भी हालत बहुत ख़राब है और वो तो दस पास है मेरे लिए बड़े काम का है.हाँ ये लीजिये मेरा कार्ड,कभी दिल्ली आना हो,कहीं कोई काम हो तो बेहिचक कहियेगा.तब तक चाय वाले ने एक गाड़ी बुला ली थी , नत्था जी चले गए,चाय वाले ने पैसे भी नहीं लिए,और मैं अँधेरे में विलीन होती सफ़ेद अम्बेसडर को वहीं जड़वत देखता रहा.

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