लन्दन की आग
उत्तरी लन्दन के टोटेनहम में तीन दिन से आग लगी हुई है.शुरूआती कारण पुलिस ने बताया की एक आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति को रोके जाने पर उसने पुलिस पर फायरिंग की, जवाबी फायरिंग में वह मारा गया.प्रतिक्रिया स्वरुप स्थानीय लोगों ने पुलिस पोस्ट को घेर लिया और पेट्रोल बमों से पुलिस पर हमला किया.इसके बाद लन्दन की दुनिया भर में पहचान बनी एक डबल देकर बस को फूंक दिया गया.धीरे धीरे भीड़ बढ़ती गयी और वहां की भाषा में ' तीसरी दुनिया ' का नज़ारा दिखने लगा.करोड़ों के सामन लूट लिए गए , स्टोर जलाये जाने लगे और पुलिस बेबस ,लाचार.पहले श्वेत ब्रिटिश मीडिया की सधी प्रतिक्रिया आई की इस इलाके में कैरेबियन मूल के अप्रवासी बहुमत में हैं और अपनी जीवन शैली तथा आमदनी के स्तर के चलते वो अभी तक मुख्य धारा में शामिल ही नहीं हो पाए हैं.ये भी कहा गया की इसी कारण ये इलाका हमेशा गडबडियों के लिए बदनाम रहा है.पर अब दुनिया भर में नेट पर तस्वीरें मौजूद हैं जिनमें मूल ब्रिटिश युवा भी सामान लूट के भागते दिख रहे हैं.यानि आर्थिक मंदी से पीड़ित और बेरोज़गारों की जमात को कमाई का मौका मिल गया.याद करिए मिस्र की हालिया क्रांति की शुरुआत , पुलिस प्रताड़ना से एक विक्रेता की मृत्यु होती है फिर उसकी तस्वीरें इंटरनेट पर जारी होती हैं जिसके बाद सुलग रहे आक्रोश को हवा मिलती है और जो हुआ सबके सामने है.लन्दन में भी सोशल नेटवर्किंग साईट्स का प्रयोग आग लगाने में बखूबी हो रहा है,'रोल ऑन एंड लूट' जैसे सन्देश जारी किये जारहे हैं.तस्वीरों में दिख रहा है की नाबालिग बच्चे भी ट्रालियों में सामान लेकर भाग रहे हैं.
यूरोप में एक बड़ा तबका ये मान रहा है की आर्थिक नीतियों के चलते दुनिया भर में चल रहे एक अंडर करेंट का ये ब्रिटिश उभार हो सकता है.पर मीडिया का एक टूल के रूप में कैसे इस्तेमाल होता है इस मामले में देखिये.कहीं भी इसे जनाक्रोश नहीं कहा जारहा है, अनियंत्रित भीड़ का अचानक हिंसक और लुटेरी जमात में बदल जाना ही कहा जारहा है.इस मामले में चीन के एक अखबार ग्लोबल टाईम्स में एक लेख पढ़ा जिसमें लिखा गया है की अगर कहीं और ये घटना होती तो बड़े आराम से पाश्चात्य मीडिया 'क्रायिसेंथिमम रिवोल्युसन' जैसा प्यारा सा नाम दे कर लग जाती आततायियों के महिमामंडन में,भले ही हम इस चीनी व्याख्या से सहमत न हों पर लन्दन का जलना कोई छोटी घटना नहीं है . दुनिया भर के नेताओं से अमेरिका कहा रहा है की वो अपने देश में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की तारीफ़ करें और कहें की उसे कुछ नहीं होगा ताकि बाज़ार का भरोसा बढे .जबानी जमा खर्च से अर्थव्यवस्था सुधारने की बातें हो रही हैं,यानी अभी भी हवा में ही किला मजबूत करने की कवायद हो रही है.ऐसे में कई सालों से हवाई किले बना कर सपने दिखाने वाली ब्रिटिश अर्थव्यवस्था भी हंगरी और ग्रीस के रास्ते पर बढ़ रही है.कहा जाता है की एथेंस ओलम्पिक के कर्जों की मार ने ग्रीस को बर्बाद कर दिया और अगला नंबर ब्रिटेन का है जो की बड़े जोर शोर से लन्दन ओलम्पिक की तैयारियों में लगा हुआ है.खेल कितने फायदेमंद होते हैं ये हम कामनवेल्थ गेम्स करा के देख चुके हैं.
पूरी दुनिया में आर्थिक मोर्चे पर हाहाकार मचा हुआ है,कोई आश्चर्य नहीं की दुनिया को तथाकथित सभ्यता सिखाने का दावा करने वाले मुल्क में लगी आग बढ़ने न लगे.ऐसे में दो साल पहले अर्थशाश्त्र का नोबल पुरस्कार जितने वाली एल्नर ओस्त्राम की याद करनी चाहिए.इतिहास में पहली बार किसी महिला को अर्थशाश्त्र का नोबल मिला था और उनका अध्ययन भी आधुनिक सोच से अलग हमारी परंपरागत समझ पर आधारित था.उन्होंने उधार और गला काट व्यवस्था की जगह परस्पर सहयोग की भावना पर बल दिया था और उदाहरण के रूप में दुनिया भर के पहाड़ी इलाकों के ढेर सारे समुदायों की व्यवस्था को पेश किया था जो अभी भी अपने व्यापर में मानवता का ध्यान रखते हैं.
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