स्लम टूर

 स्लम टूर का विदेशियों में बड़ा क्रेज होता है,ये एक अलग ही तरीके का टूर होता है.जिसमें जानवरों जैसे हालत में जी रहे मानुषों को देखने के लिए बड़े बड़े कैमरे और पानी कि बोतल लेकर टूरिस्ट आते हैं.हवाई अड्डे पर ही होटल वाले माला वाला पहना कर रिसीव करते हैं और शाईनिंग इण्डिया के दर्शन के स्पेसल पॅकेज कि शुरुआत हो जाती है.अब इस टूर में धारावी कि मोनोपोली ख़तम हो गयी है.बढ़ते रुझान को देखते हुए सरकारी स्तर पर बड़ी बड़ी योजनायें बनायीं गयी हैं ताकि स्लम हर जगह बन सके और टूरिस्टों को ज्यादे दिक्कत न हो क्योंकि इस धंधे से देश कि आय में उछाल आती है. इस तरह के टूर से उस भारत कि खोज होती है जो टीवी चैनलों और फिल्म फेस्टिवलों में नहीं दिखाया जाता.टूरिस्म प्रमोट करने के वास्ते अपने ब्रोसर में भी सरकार पता नहीं क्यों स्लम टूर के बारे में नहीं बताती.
स्लमों में जब अलग नस्ल के लोग आते हैं तो कई दिनों तक उनकी चाल,उनके कपडे,बोलने के लहजे आदि कि चर्चा होती रहती है.ऐसे ही भारत के भी एक स्वयंभू युवराज हैं जिनको विलेज सफारी का बड़ा चस्का लगा है.ये जब से राजनीती में आये हैं ,गाहे -बगाहे चार्टेड प्लेन से निकल पड़ते हैं.पर अधेड़ होने को आगये अभी तक समझ नहीं सकें हैं.ये जब भी टूर पर निकलते हैं तब मिडिया वाले ऐसा हल्ला मचाते हैं जैसे कहीं हांका लग रहा हो.गावों में भी इनका टार्गेट वही समाज रहता है जिसके भले के लिए इनका  खानदानी  पंजा अब खूनी दिखने लगा है.महंगाई से आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है,अब सरकारी अर्थशास्त्री  कह रहे हैं कि डीज़ल कि कीमत बढ़ा दी जाये तो महंगाई  कम हो सकती है.जबकि युवराज बनारस में बोल के गए कि यूपी में कांग्रेस कि सरकार नहीं है इसलिए बदहाली है.जनता भी ताली बजा दी क्योंकि बोलने से पहले टूरिस्ट ने उसी बस्ती के कुँए का पानी पिया था.वो लोटा भी धन्य होगया जिससे जल ग्रहण किया गया था.
बताया गया कि ये गूगल पर गाँव खोजते हैं फिर निकल पड़ते हैं.जहाँ अब तेल कि कीमतों से आजिज़ आकर खाते पीते लोग भी गाड़ी स्टार्ट करने से पहले सोचते हैं,वहीँ  जहाज और बड़ी बड़ी गाड़ियों के साथ देश के गरीबों कि चिंता लिए घूमते भावी प्रधानमंत्री को ये समझ में क्यों नहीं आता कि ये दलित बस्तियां अभी भी क्यों कायम हैं,क्यों अब हमारे गाँव भी स्लम टूर का मजा देने लगें हैं.खेती किसानी को बर्बाद करने के लिए बड़ी बड़ी परियोजनाएं आगई हैं.पूरी कोशिश सफल होती दिख रही है जब किसान मजदूर  बन जायेंगे,और धीरे धीरे खेत कार्पोरेट फार्मिंग करने वालों  या फिर बिल्डरों के हाथ में आजायेंगे. फिर ऐसा समय आएगा कि न खेत बचेंगे न कोई काम बचेगा,आखिर नरेगा - सरेगा में कब तक  काम रहेगा(बांस जमीन में गाड़ के ऊपर नीचे करने का भी पेमेंट होने लगे तो अलग बात) .फिर वो मजदूर बन चुका किसान  आखिर में शहर कि ओर  ही भागेगा,और हर शहर एक एडवेंचरस स्लम टूरिज्म कि संभावनाओं को अपने आप में समाये रहेगा.
फिर किसी दिल्ली वाले  को गाँव कि ओर भागने कि जरूरत नहीं पड़ेगी,बोर होने पर वह इन्ही गलियों  में निकल जायेगा जहाँ आदमी टाईप के लोग मिलेंगे,और वो वोटर भी होंगे.

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