सद्भावना में टोपी का बड़ा महत्त्व है,ऐसा कम से कम आधुनिक भारत के इतिहास से पता चलता है.अनेक अवसरों पर भांति भांति की टोपियाँ पहनाई जाती रही हैं.गाँधी को टोपी पहने हुए,कम से कम मैंने तो किसी चित्र में नहीं देखा पर गाँधी मार्का टोपी ऐसी पहनाई गयी की आज तक गले लगी है.ये तो सब जानते हैं की टोपी नेहरू पहनते थे और ब्रांड नेम हुआ गाँधी. टोपियों का इतिहास बड़ा अजीब है,अभी ताज़ा इतिहास टाईप का कुछ दिल्ली के रामलीला मैदान से लेकर सभी टीवी चैनलों पर भी बना था,जब सडकों पर टोपियों का 'सैलाब' दिखने लगा था.
हालिया चर्चा में एक टोपी कांड अहमदाबाद में हुआ,सूत्र बताते हैं की ये भी एक पूर्वनियोजित कार्यक्रम था.राम को फिर भुनाना मुश्किल होता देख एक लाईव कार्यक्रम रखा गया,जहाँ चाँद तारा मार्का टोपी को, कैमरे के सामने लगाने से मना किया गया.ये सिकुलर राजनीति में एक दुस्साहसिक कदम है,क्योंकि टोपी के चक्कर में ही ओसामा भी 'जी' हो जाता है,ऐसे में सद्भावना उपवास में टोपी का अनादर ? पर ये बात दूर तक जाएगी,भटके हुए लोग जो चाल और चरित्र बिगड़ जाने की बात कर रहे थे ,फिर एकजुट हो जायेंगे.एक महानायक की धमक दिल्ली पहुँचने लगी और वेटिंग में पड़े कैंडिडेट का नाम ही लिस्ट से बाहर हो गया.ठीक बात है ,भाई आज़ादी , अपनी अपनी.आप पहनो या मत पहनो.पर राजनियत समझना सब के बस की बात नहीं,खाली 32 रुपये रोज का जुगाड़ कर के रेखा पार कर लेने वाले तो एक दम नहीं समझ पाएंगे.लोगों ने अपनी अपनी समझ के हिसाब से इस टोपी को देखने की कोशिश की. समझने की आज़ादी एक बात है और उस को अभिव्यक्त करने की आज़ादी दूसरी बात है.संविधान तो बहुत कुछ कहता है,उसकी बात मत कीजियेगा. इस टोपी कांड को भी इंदौर के एक कार्टूनिस्ट हरीश यादव "मुसव्विर " ने अपने हिसाब से समझा और एक अखबार में कार्टून बना दिया.छपते ही बवाल मच गया.मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री आजकल चीन गए हुए हैं(दक्षिणपंथी, वामपंथियों के देश में),ने तत्काल आदेश दिया की राज्य की सद्भावना बिगड़ने न पाए इसलिए हरीश को गिफ्तार किया जाए.धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में धारा २९५ A के तहत कार्टूनिस्ट हरीश गिफ्तार कर लिए गए.धार्मिक भावना ,यानि चाँद तारे वाली टोपी को गलत जगह पर दिखाना,या मोदी जी का नग्न चित्र बना कर "हिन्दू ह्रदय सम्राट" की छवि धूमिल करना ,क्या मामला है भाई?अखबार का कारिन्दा अपनी बहादुरी के चक्कर में कभी संकट में पड़ जाता है तो खुद ही झेलता है,वैसे ही हरीश झेलेंगे.अभी भोपाल फोन मिलाया तो 'हिन्दू' पत्रकार मित्र ने कहा की इसके पहले क्यों नहीं उसने दिग्विजय या सोनिया का भी ऐसा ही कार्टून बनाया.ये भी ठिकाने का तर्क हो सकता है बहुतों के लिए,पर मुझे तो कार्टून में उस डंडे की छवि का ध्यान आरहा है जो इस देश को हांकने के लिए तंत्र के हाथ में है.ये डंडा हाथ में रहे तो एक कांस्टेबल की तहरीर पर आईपीएस गिफ्तार किया जा सकता है, अदने से कार्टूनिस्ट की क्या औकात ,वो तो बेचारा बत्तीस रुपये को चौसठ करने के चक्कर में आड़ी तिरछी रेखाएं खींचता रहता है,ताकि जिंदगी की गाड़ी धक्कापेल चलती रहे.
हालिया चर्चा में एक टोपी कांड अहमदाबाद में हुआ,सूत्र बताते हैं की ये भी एक पूर्वनियोजित कार्यक्रम था.राम को फिर भुनाना मुश्किल होता देख एक लाईव कार्यक्रम रखा गया,जहाँ चाँद तारा मार्का टोपी को, कैमरे के सामने लगाने से मना किया गया.ये सिकुलर राजनीति में एक दुस्साहसिक कदम है,क्योंकि टोपी के चक्कर में ही ओसामा भी 'जी' हो जाता है,ऐसे में सद्भावना उपवास में टोपी का अनादर ? पर ये बात दूर तक जाएगी,भटके हुए लोग जो चाल और चरित्र बिगड़ जाने की बात कर रहे थे ,फिर एकजुट हो जायेंगे.एक महानायक की धमक दिल्ली पहुँचने लगी और वेटिंग में पड़े कैंडिडेट का नाम ही लिस्ट से बाहर हो गया.ठीक बात है ,भाई आज़ादी , अपनी अपनी.आप पहनो या मत पहनो.पर राजनियत समझना सब के बस की बात नहीं,खाली 32 रुपये रोज का जुगाड़ कर के रेखा पार कर लेने वाले तो एक दम नहीं समझ पाएंगे.लोगों ने अपनी अपनी समझ के हिसाब से इस टोपी को देखने की कोशिश की. समझने की आज़ादी एक बात है और उस को अभिव्यक्त करने की आज़ादी दूसरी बात है.संविधान तो बहुत कुछ कहता है,उसकी बात मत कीजियेगा. इस टोपी कांड को भी इंदौर के एक कार्टूनिस्ट हरीश यादव "मुसव्विर " ने अपने हिसाब से समझा और एक अखबार में कार्टून बना दिया.छपते ही बवाल मच गया.मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री आजकल चीन गए हुए हैं(दक्षिणपंथी, वामपंथियों के देश में),ने तत्काल आदेश दिया की राज्य की सद्भावना बिगड़ने न पाए इसलिए हरीश को गिफ्तार किया जाए.धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में धारा २९५ A के तहत कार्टूनिस्ट हरीश गिफ्तार कर लिए गए.धार्मिक भावना ,यानि चाँद तारे वाली टोपी को गलत जगह पर दिखाना,या मोदी जी का नग्न चित्र बना कर "हिन्दू ह्रदय सम्राट" की छवि धूमिल करना ,क्या मामला है भाई?अखबार का कारिन्दा अपनी बहादुरी के चक्कर में कभी संकट में पड़ जाता है तो खुद ही झेलता है,वैसे ही हरीश झेलेंगे.अभी भोपाल फोन मिलाया तो 'हिन्दू' पत्रकार मित्र ने कहा की इसके पहले क्यों नहीं उसने दिग्विजय या सोनिया का भी ऐसा ही कार्टून बनाया.ये भी ठिकाने का तर्क हो सकता है बहुतों के लिए,पर मुझे तो कार्टून में उस डंडे की छवि का ध्यान आरहा है जो इस देश को हांकने के लिए तंत्र के हाथ में है.ये डंडा हाथ में रहे तो एक कांस्टेबल की तहरीर पर आईपीएस गिफ्तार किया जा सकता है, अदने से कार्टूनिस्ट की क्या औकात ,वो तो बेचारा बत्तीस रुपये को चौसठ करने के चक्कर में आड़ी तिरछी रेखाएं खींचता रहता है,ताकि जिंदगी की गाड़ी धक्कापेल चलती रहे.
जहाँ चाँद तारा मार्का टोपी को, कैमरे के सामने लगाने से मना किया गया.ये सिकुलर राजनीति में एक दुस्साहसिक कदम है,क्योंकि टोपी के चक्कर में ही ओसामा भी 'जी' हो जाता है,ऐसे में सद्भावना उपवास में टोपी का अनादर ? पर ये बात दूर तक जाएगी,भटके हुए लोग जो चाल और चरित्र बिगड़ जाने की बात कर रहे थे ,फिर एकजुट हो जायेंगे.,....................बहुत खूब
जवाब देंहटाएंकार्टून तो अजब गजब है लेकिन ऐसा कार्टून प्रबुद्ध वर्ग के लिये होता है आम जनता इसे हुसैन की तरह नफ़रत की निगाह से ही देखेगी सो जनाब मुस्स्वर का यह कार्टूण निश्चित तौर पर जनभावनाए भड़काने वाला ही कहा जायेगा और गिर्फ़्तारी होकर रिहाई से कम से कम हर हर महादेव का नारा लगा नफ़रत फ़ैलाते लोगो का एक हथियार छिन ही जायेगा सो फ़िल्हाल मुझे निर्णय सही ही लगता है
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