फुर्सत के पल --------
रामगढ़ एक प्यारा सा क़स्बा है,जहाँ आकर आप को खुद से मिलने का भरपूर मौका मिलता है.मुझे यहाँ एक कार्यशाला में आने का निमंत्रण मिला था.रामगढ़ के बारे में अलोक तोमर जी का लिखा याद आरहा था.पहुँचते ही सूरज ने बिदाई की तैयारी कर ली,पर गोधुली में आकाश के बदलते रंग मस्तिष्क में ऐसे घुसते गए की भूख प्यास ,थकान की जगह जीवन के प्रति अनुराग अन्दर तक उतरने लगा.कुछ कुछ डिवाइन टाइप की फीलिंग होने लगी.जहाँ अन्य लोगों को टिकाया गया था वहां बैग पटक कर बाहर आया.एक जानी - पहचानी सी सूरत दिखाई दी,ओह ये अपने लखनऊ वाले अम्बरीश जी.पिछले साल कुछ पोर्टलों पर इनके रामगढ़ में महल जैसे काटेज की खबरें चलीं थीं,तो यहीं है इनका महल.कुशल क्षेम के बाद उन्होंने अपने यहाँ ही रहने का निमंत्रण दिया.होटल --रिसोर्ट का औपचारिक माहौल अपन को
जमता है नहीं ऊपर से घर के खाने की लालच में मैं अम्बरीश जी के यहाँ आगया.
राइटर्स काटेज,जी हाँ छोटी सी जगह में बहुत ज्यादे स्पेस देता हुआ महल.अजी राजाओं को भी दुर्लभ है ये.नीचे के तल पर एक छोटा कमरा अम्बरीश जी का और ऊपर कभी कभार आने वाले मित्रों के लिए सुकून वाली जगह.अगल बगल ढेर सारे फलों से लदे पेड़ और शायद राष्ट्रपतिभवन से भी ज्यादे प्रफुल्लित फूलों ने इस जगह को
क्या बनाया है आप आकर ही समझ सकते हैं.फिर शुरू हुआ किस्से कहानियों का दौर,मैं दिल्ली के रामलीला मैदान को छोड़ कर आया था,सीमित नेट कनेक्टिविटी से
उपलब्ध दिल्ली में चल रही लीलाओं की जानकारी,पर तभी आया बहादुर.वैसे उसका नाम इन्दर है पर इन लोगों को हमारे देश में बहादुर कहा जाता है.ये यहाँ अम्बरीश जी का पुराना सहयोगी है. खासियत पता चली की ये हमेशा अपने से बात करता रहता है और बात होती है उसकी पत्नी और बिहार के बारे में,कारण उसकी पत्नी एक बिहारी श्रमिक के साथ पलायित हो चुकी है क्योंकि वह बहादुर से कम दारु पीता था.पता चला की इस प्यारे कसबे में ढेर सारे रसूख वालों की बड़ी बड़ी कोठियां हैं, जहाँ ऐसे ही बाहदुर ही रहते हैं.कुछ की पत्नियाँ भी साथ हैं और कुछ की भाग गयी हैं.इन बहादुरों के सहयोगी के रूप में मालिक की हैसियत के हिसाब से कुत्ते भी हैं.जो फलों पर टूटते बंदरों को शुरू में हड़काते हैं.पर पता चला की बन्दर बड़े कायदे से कुत्तों को पकड़ कर झपड़िया देते हैं,जिसके बाद कुत्ते भोंकना भी भूल जाते हैं.न तो रामगढ़ के कुत्ते आप को बोलेंगे और न बन्दर.बंदरों के सुख को देख कर लगा की अगले जनम मोहे रामगढ़ का वानर ही कीजो,चारों तरफ रसीले फलों के जंगल,अपने हिसाब से चुनने और खाने की आजादी.
अँधेरा घिरता जारहा था और आकाश में तारे बस हाथ बढ़ा के छु लेने की दूरी पर लग रहे थे.जाहिर है सोने की इच्छा तो नहीं थी पर टैगोर टॉप जाने की इच्छा के साथ जून के महीने में कम्बल तान लेट गया.सुबह टैगोर टॉप.
दैट्स व्हाई आई लभ उत्तराखंड !��
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