वाईब्रेंट उपवास

गुजरात बड़ा कलरफुल लगता है,हर चीज वहां की अनोखी होती है.कुछ नया करने में गुजराती पूरी दुनिया में सबसे आगे रहते हैं.उनके इन्नोवेटिव विचारों ने पूरी दुनिया में जगह बनायीं है,चाहे दुनिया मुट्ठी में करने की बात हो या रेलगाड़ी को भट्ठी बनाने  की बात  हो. इस समय भी तमाम सरकारी और गैर सरकारी कारणों से गुजरात चर्चा  में  है.दिल्ली से लेकर अमेरिका तक लोग नाम ले रहे हैं.ऐसे में वहां के मुखिया का उपवास पर बैठना एक बड़ी घटना है. इस बारे में आप लोगों को डिटेल टीवी से मिलता रहेगा.हाँ तब तक दिल्ली डूबी की मुम्बई,अन्ना का भजन या अमर की जमानत पर जयाप्रदा के विचार जैसे समाचार आप लोगों को नहीं मिलेंगे.हाँ इस अवसर पर अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री क्या कहते हैं ये जानने की कोशिश की है असांचे कुमार ने,जिनकी ख़बरों को आप अपने रिस्क पर सच्ची या झूठी मानने  के लिए स्वतंत्र हैं.------- 
किसी भी उपवास पर सबसे पहले डाक्टर की सलाह ली जाती है,तो सबसे पहले नागालैंड (ये भी भारत में ही है) के मुख्यमंत्री डाक्टर मुकुल संगमा (ओरिजिनल  एमबीबीएस ) का कहना है की ये उनका निजी मामला  है और हमारे राज्य में उपवास की स्थिति कभी नहीं आती क्योंकि हम लोग सब कुछ खाते हैं,इसलिए लोगों को भूखे रहने की आदत  नहीं है.हाँ मैं जिस दिन टीवी खोलता हूँ उस दिन  नहीं खाता क्योंकि हमारे इलाके की खबर आप लोग दिखाते ही नहीं हैं.अगर दिल्ली जाता हूँ तो हफ्ते भर खाने का मन नहीं करता क्योंकि सब पूछते हैं की किस देश से आये हैं.
भारत का मुकुट (किताबों में लिखा है ) है कश्मीर,वहां के ओमर अब्दुल्ला साहब  ने बताया की वो खुद चार दिन से ठीक से खा नहीं पा  रहे हैं.शादी  टूट गयी है,मैं अपनी मीडिया वाली मित्र  से रिश्ता जोड़ना चाहता हूँ जबकि अब्बू जोर मार रहे हैं की पार्टी का ध्यान रखते हुए वानी साहब की बेटी से ब्याह करना चाहिए.ऐसे में कम्युनल पार्टी का कोई खाए या उपवास रहे ,उससे मुझे क्या.
उत्तराखंड के फौजी सीएम ने मूंछों पर ताव   देते हुए कहा की भाई अभी तो बड़ा खाना का टाईम  है,लोकसभा में सारी सीटें हारने पर मेरा कोर्ट मार्शल  हो गया था.अब विधान सभा की तैयारी है.गुजरात बहुत दूर है.जब तक दूसरी लाईन के सभी नेताओं से बात नहीं हो जाती तब तक मैं मोदी पर कुछ नहीं बोलूँगा.
मायावती का मानना है की अब मनुवादी ताकतें एक हो रहीं हैं,और जब तक केंद्र सरकार सीबीआई के घोड़े नहीं छोड़ती मैं इस मुद्दे के विरोध में हूँ.हाँ आप लोग किसिम किसिम की बात करते हैं लेकिन मैं उपवास की समर्थक नहीं हूँ,क्योंकि फिर मेरे भोजन चखने वालों को भी भूखा रहना पड़ेगा और मैं अन्याय किसी के साथ नहीं करती.
छत्तीसगढ़ के रमण सिंह का कहना है की एक आयुर्वेदिक डाक्टर होने के नाते मैं उपवास का समर्थन करता हूँ.मुझे कभी दिल्ली नहीं जाना इसलिए मोदी कुछ भी करें बस चुनाव में मेरे यहाँ भी समय दें. 
राजस्थान के गहलोत साहब का मानना है की इधर कुछ दिन से उनको भी भूख नहीं लग रही है और शरीर पर कोई असर नहीं पड़ा.आईइएस गायब,मंत्री भंवर में ,कुछ जमीनों का लेन देन,भूख ही मर गयी.पर मोदी के बारे में मैं दिन भर टीवी देखूंगा तब बोलूँगा. 
शीला दीक्षित का कहना है की डूबती दिल्ली को देखते हुए सब मुझे अन्दरखाने बोल तो रहे हैं की मोदी से सीख लीजिये.अभी बारिश में दिन भर मेरी गाड़ी पानी में फंसी रही और लंच नहीं कर पाई ,कमजोरी हो गयी है.लेकिन वाघेला जी जो कर रहे हैं वह तारीफ के काबिल है,भले ही प्रेरणा नरेंद्र मोदी से मिली हो. 
महाराष्ट्र के चह्वाण साहब का कहना है की हमारे मराठी मानुस अन्ना जी जैसा कोई नहीं हो सकता.ये उपवास ड्रामा है.महाराष्ट्र के खिलाफ साजिश कर के गुजरातियों ने यहाँ की कमाई भी वहां लगा दी है.बिहारी लोगों से भी ज्यादा बुरा किया है इन लोगों ने हमारे साथ.ऐसे में मैं मोदी ही नहीं बल्कि सारे गुजरातियों की निंदा करता हूँ.
 जयललिता जी का कहना है की एक बार मैं उपवास पर बैठी थी तो डीएमके वाले पूछ रहे थे की मैं बार -बार अपनी वैन में क्यों जाती थी.इसीलिए मैंने अपने दो नेताओं को गुजरात भेजा है,जरा देख के आयें की उपवास कैसे मैनेज किया जाता है.जब तक कांग्रेस उस काले चश्मे वाले के साथ रहेगी,मैं भाजपा के हर काम का समर्थन करूंगी.
      इतनी  रिपोर्टिंग के बाद असांचे कुमार को खबर मिली की मोदी भाऊ के यहाँ माहौल  जम रहा है. सब झूठ सच लिखने दिखाने वाले वहां पहुँच रहे हैं ,सो वह भी गुजरात निकल लिया. 


हिंदी इज कूल !


हिंदी दिवस,सुनने में बड़ा अजीब लगता है.अब इसमें अजीब क्या है?खड़ी बोली के इतिहास में जाने की जरूरत नहीं,जैसे इंडिया दैट इस भारत है वैसे ही दुनिया को पता है की हिंदुस्तान की एक भाषा हिंदी है.कुछ वर्षों पहले तक ये गंभीर चिंता का विषय था की हिंदी गंवार गवंई भारत की बोली बन के न रह जाए, क्योंकि शाईनिंग इण्डिया हो रहा था.गाँव  की गलियों में भी कार्मेंट स्कूल खुल रहे हैं..'स्पोकिंग' अंग्रेजी ठीक करने के लिए  'व्हेन आई टाक तो आईये टाक' मार्का स्पोकेन क्लासेस की दुकानों की बाढ़ आगई.हिंदी पिछड़े पन की निशानी समझी जा रही थी,तभी भूमंडली करण की बयार चली और भला होने लगा हिंदी का भी.बाज़ार मुट्ठी में करने के लिए निकले शूरमाओं को सबसे पहले ध्यान आया की हिंदी तो देश की आत्मा है,फिर तो क्रिएटिव हिंदी का स्कोप बढ़ा और तरह तरह के विज्ञापन किसी न किसी रूप में हिंदी को प्रमोट करने लगे.सिनेमा का तो बहुत बड़ा योगदान है,विदेशों का नहीं मालूम पर अपने यहाँ तो अहिन्दी भाषी फौजियों को उनकी यूनिट में सिनेमा दिखाया जाता है ताकि भाषा समझने लगें.ये अलग बात है की हिंदी के संवाद रोमन स्क्रिप्ट में लिख कर हीरो हिरोईन को दिए जाते हैं,क्योंकि ज्यादेतर कलाकार ओरिजनल अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में पढ़े हैं जहाँ हिंदी बोलने पर सजा दी जाती है.पर इस तरीके  से कटरीना जैसों को लाभ मिलता है और फायदे में हम भी हैं ,वर्ना एक प्रतिभा से हम वंचित रहते.
हिंदी में एक शिकायत ये भी है की लोग हिंदी साहित्य पढ़ते ही नहीं,पढ़ते भी हैं कभी कभार तो खरीद के तो बिलकुल नहीं.इसी कारण साहित्य का विकास नहीं हो पा रहा है,जैसे लगता ही की प्रेमचंद पहले अपने पाठक सेट कर लेते थे तब लिखना शुरू करते थे.पर इस लिखंत पढंत को नया आयाम मिल गया साईबर अंतरजाल से.बाज़ार का सोच के ही सही पर अमेरिकी कंपनियों के ऊपर आधारित इंटरनेट ने हिंदी को जो दिशा दी उससे भारतेंदु और रामचंद शुक्ल की आत्माएं भी प्रसन्न होंगी. फेसबुक द्वारा रचनात्मकता के योगदान पर तो शोध होने चाहिए.हर आदमी जिसके पास नेट है,थोडा बहुत क्रिएटिव हो ही गया है.कभी ये रचनात्मकता मौलिक दिखती है तो कभी  क़तर ब्योंत और कापी पेस्ट की कारीगरी भी रहती है.लेकिन बात हिंदी की तो रहती ही है.फिर इसमें ब्लोगिंग ने तो क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया.मसि कागद का झंझट ही ख़तम.बस जो जी में आये लिखिए , हाँ पाठक धीरे धीरे आही जाते हैं नहीं तो गुट बना के आप किसी को लाईक करिए,कमेन्ट मारते रहिये ,शर्म लिहाज होगी तो वो भी आपके साथ वैसा ही व्यवहार करेगा. और सबसे बड़ी बात ऐसी हिंदी सेवा में खर्चा भी कुछ अधिक नहीं है और पहुँच की थाह तो नारद मुनि को भी लगाना मुश्किल.तो चिंता की कोई बात नहीं,हिंदी बची रहेगी.मना लेने दीजिये दिवस,कम से कम इसी बहाने तमाम संस्थानों में कुछ लोगों को नौकरी मिली हुई है.याद आता है हिंदी प्रेमी मुलायम यादव के मुख्यमंत्री रहते जारी एक सर्कुलर जिसको ब्यूरोक्रेसी ने अपनी भाषा में जारी किया था की-"आल कंसर्न्ड आफिसर्स आर रिक्वेस्टेड टू यूज हिंदी,इन प्लेस ऑफ़ इंग्लिश." 
 पर साहब बहादुर लोग भी समझें की हिंदी हमारे दिलों में है,सपने हमें हिंदी में ही आते हैं.पूरे देश को जोड़ती है और दुनिया में हमारी पहचान है हिंदी.   


सैंडिल क्वीन ?

  विकिलीक्स का दुनिया में बड़ा नाम है.हमारी आपकी क्या औकात,उसने ओबामा से लेकर अरब के शाह की  नाक  में भी पानी भर दिया है.इस लीकेज कंपनी के सरदार जुलियन असान्जे निर्विवाद रूप से हेक्टिविस्ट मूवमेंट के बादशाह हैं.निश्चित ही कुछ दिनों पहले तक उन्हें मालूम नहीं रहा  होगा की  भारत में लोग अभी किस युग में जी रहे हैं.उनके द्वारा लीक किये गए  केबल्स में से कुछ उत्तर प्रदेश की  मुख्यमंत्री के  बारे में थे.बस यहीं से वो  सब भी  दुनिया के सामने लीक हो गया  जो  हम लोग  अब तक छुपाये बैठे थे.कुछ दलित  विचारकों का  कहना  है की लखनऊ के मनुवादी पत्रकारों ने अमेरिकी अधिकारियों को टुच्ची जानकारियां दी थीं वही लीक  कर के सब हाय तोबा मचा रहे हैं.यूँ तो तमाम जानकारियां थीं पर मसालेदार बात निकली सैंडिल  लेने के लिए वायुयान का मुंबई जाना.सही बात है, मद्रासी जयललिता के  सैंडलों से बड़ी खबर ये थी.पर  हल्ला किस बात का? रानी हैं,जितना मन करे भेली खाएं,बीडी पिए ,आप कौन होते हैं सवाल उठाने वाले
                अपने जोरदार अंदाज में बहिन जी ने इसका जवाब दिया,और असान्जे को  विरोधियों के  हाथों में खेलने वाला बतादिया.बस यहीं गड़बड़ी हो गयी.दुनिया जान गयी की बीमारू कहे जाने वाले ग्रुप ऑफ़ स्टेट्स में सिरमौर उत्तरप्रदेश अपनी जगह पर कायम क्यों है.  देश की सबसे ज्यादा जनसँख्या और गरीबी  ढोने वाला प्रदेश किन  लोगों के हवाले है.राजीव गाँधी का सूचना क्रांति का सपना कहाँ गया,जब इस प्रदेश के  मुखिया को ही नहीं मालूम की कोसना किसको है.एक आस्ट्रेलियन  अखबार ने चुटकी लेते ,  हुए लिखा की सैंडिल क्वीन को इतनी  समझ नहीं की इस संवाद में असान्जे की क्या भूमिका है.सब जान गए की कंप्यूटर क्रांति कहाँ है, सिलिकन वैली में अपना झंडा गाड़ने वाले भी जरूर शर्माए होंगे.असान्जे के  बाप ने भी  कभी ये सपना भी नहीं देखा होगा की उनका बेटा कभी एंटी दलित और मनुवादी गतिविधियों   में शामिल पाया जायेगा,बलात्कार - सलात्कार तो चलते रहते हैं. सलाहकार लोग तो खुद ही  दूसरे लीकेज की सफाई देने में लग गए होंगे अन्यथा   उन्होंने समझाया होता की ये विकी सिकी क्या है,खतो किताबत  चुराने वाले को गाली दे कर क्या मिलेगा.पर दोनों खास सलाहकारों  को भी इस लीकेज से  फायदा ही हुआ.वो अपनी जात जमात और करीबियों से  कह तो सकते ही हैं की देखो दिल से हम साफ़ हैं,कम से कम विकीलीक्स पर भरोसा करो.
हाँ उलटी  सीधी हरकत के आरोप में नजरबन्द असान्जे को जरूर  खुल कर हँसने का मौका मिला होगा.

ये भी गए !

  कलकत्ता से आये दिल्ली , दिल्ली से पहुंचे बम्बई बीच में  आया सैफई पर जाना पड़ा तिहाड़.हे भगवान टूटा ये कौन सा पहाड़ ! उन्हें संकट मोचक कहा जाता था,कोई भी समस्या हो चुटकी बजाते  हल निकालने का दावा और शायद  ही कोई ऐसी  जगह नहीं जहाँ पहुँच  नहीं का गुरूर.पर ये तो कभी सोचा  न था की अफजल  गुरु का पडोसी बनना पड़ेगा.कहते  हैं की ऐसे लक्षण दुर्दिन का चरम है     .           
     उन्हें  स्टिंग का  किंग भी कहा जाता रहा है,हर मौके पर उनके पास सी डी तैयार रहती थी.गोया कोई चलता फिरता प्रोडक्सन हाउस  हो. बिपाशा से बातचीत में उन्होंने अपनी  कमजोरी का जिक्र किया तो था पर समय इतना कमजोर हो जायेगा ये  अंदेशा तो आज़म खान को भी नहीं रहा होगा.हे भगवान कहीं बड़े  भईया के साथ मंदिर मंदिर घूमना बंद हो गया  सजा उसी की मिल  रही है क्या. दोस्ताना सलामत रहता तो,बिग बहु की संतान के  वास्ते ही सही, पर टीवी  कैमरों को लेकर न जाने कितने मंदिर घूम आयेहोते. लेकिन फंस गए एक टीवी चैनल के जाल में.इसमें भी  दुविधा ही है की कहीं वो सीडी भी इन्होने ही तो नहीं बनवाई थी ताकि  भविष्य में इनहाउस  वितरण में काम आये.पर ये फंसे किस बात के लिए हैं ये समझ में नहीं आरहा है. सूत्रों , की माने तो सैफई में  स्टेज शो और भंडारा का  आयोजन किया जाना था और  नेताजी ने इस बार नयी वैरायटी  लाने को कहा था, इसी  चक्कर में ये अलग अलग तरह के  आईटम की तलाश में  बयाने की रकम को कुछ कलाकारों तक पहुँचाने में लगे थे. लेकिन  अर्गल ने कहा है की ये वाली बात अनर्गल है.तो भईया सही बात क्या है? सही बात तो ए रजा ने भी की और कानी ने भी,इन  दोनों ने कहा की हम जिस  मामले में जेल आये वो तो वजीरेआला पर भी बनता है.पर क्या  कलाकार  भी बोलेंगे की ये किस  समाज की  सेवा में  मेवा खाने आगये.पर अगर सच भी बोलेंगे तो कोई मानेगा नहीं क्योंकि कानून कहता है की केवल चिंदी चोर का  बयान ही प्रमाणिक होता है, जो हज़ार - दो हज़ार की  चोरी के केस में भीतर जाता है.बड़े लोगों के हवालात में  आने पर उनके उनके  हवाले से आने वाली हर बात झूठी होती है क्योंकि उनकी  बिरादरी में सच का  चलन ही नहीं है.अदालतें लाख कोशिश करती रहें  सुधारने की पर इन बड़े लोगों में सुधरने का  जीन ही नहीं होता....पर इनको तो जमानत जल्दी मिल जानी चाहिए,   . भ्रष्टाचार मिटाने के लिए चिंतित संसद द्वारा लोकपाल बिल बनाने के लिए गठित स्टैंडिंग कमिटी के माननीय सदस्य हैं.अधिक दिन तक अन्दर रहने से भ्रष्टाचार के खिलाफ संसद की मुहीम को झटका लगेगा.और ऐसे झटके गणिकातंत्र के लिए उचित नहीं हैं
   .......और अभी अभी खबर आरही है की  अदालत के बाहर बम फटा है.